सुप्रीम कोर्ट का झटके जैसा फैसला, इन बेटियों को नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हिस्सा – Daughters Property Rights

By Prerna Gupta

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Daughters property rights

Daughters Property Rights : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा निर्णय दिया है जो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। यह फैसला उस धारणा को झटका देता है जिसमें माना जाता था कि बेटा और बेटी को पिता की संपत्ति में बराबरी का अधिकार होता है। लेकिन कोर्ट ने एक तलाक से जुड़े मामले में जो टिप्पणी की है, उससे यह साफ हो गया है कि कुछ खास परिस्थितियों में बेटी को पिता की संपत्ति में हक नहीं मिलेगा।

क्या है पूरा मामला?

यह केस एक तलाकशुदा दंपती से जुड़ा है। पति ने जिला अदालत में तलाक की याचिका दायर की, जिसे मंजूरी मिल गई। पत्नी ने हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इस दौरान पता चला कि उनकी बेटी अपने पिता से किसी भी प्रकार का रिश्ता नहीं रखना चाहती थी। वह अपने भाई के साथ रह रही थी और पिता से किसी तरह की भावनात्मक या आर्थिक मदद नहीं चाहती थी।

सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

कोर्ट ने साफ कहा कि अगर कोई बेटी खुद ही अपने पिता से रिश्ता तोड़ लेती है, उनसे कोई संबंध नहीं रखती, तो वह उनकी संपत्ति में हिस्सा मांगने की हकदार नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ जन्म से कोई रिश्ता बनता है, लेकिन संपत्ति के अधिकार के लिए उस रिश्ते को निभाना भी जरूरी है।

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“अधिकार मांगने से पहले रिश्तों की जिम्मेदारी निभाना जरूरी है” – सुप्रीम कोर्ट

क्या बेटी पिता से खर्च की मांग कर सकती है?

फैसले में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि बेटी की उम्र 20 साल के करीब है और वह अपने पिता से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती, तो वह उनसे शिक्षा, शादी या किसी भी तरह का खर्च नहीं मांग सकती। यानी अगर आप अपने पिता को जीवन से पूरी तरह अलग कर चुके हैं, तो आप उनके धन या संपत्ति पर दावा नहीं कर सकते।

पति को एकमुश्त राशि देने की छूट

इस केस में पति ने पत्नी के खर्च के लिए एकमुश्त 10 लाख रुपये देने की पेशकश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह राशि मां को दी जा सकती है, ताकि वह अपनी बेटी की देखभाल कर सके।

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महत्वपूर्ण संदेश

यह फैसला उन सभी मामलों के लिए एक नज़ीर बन सकता है जहां केवल अधिकार की बात की जाती है लेकिन रिश्तों और जिम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी रिश्ते से पूरी तरह अलग हो जाता है, तो वह उस रिश्ते से जुड़े अधिकार की मांग नहीं कर सकता।

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